सोमवार, 31 अगस्त 2015

उस मधुबाला ने फंद रचे , सुर असुर लबों पर जाम रखे , फिर नव-हेलन सी आ विरजी , रजधानी दिल्ली के दिल में

आज पढ़िए जाति परस्त और राष्ट्रविरोधी राजनीति को बे -नकाब करती डॉ. वागीश मेहता की रचना जिसका ज़िक्र हम पिछले कई दिनों से कर रहे थे और जिसकी कुछ शीर्ष पंक्तियों का हम ने दीगर रिपोर्टों में  इस्तेमाल भी किया था :

                      अब तो हरिहर ही लाज रखे 

                                            -------------------डॉ वागीश मेहता 

जय सोनी मोनी मूढ़ मते ,

जो केजरवाल से गए छले ,

अब तो हरिहर ही लाज रखे। 
                    
                 (१  )
उस मधुबाला ने फंद  रचे ,

सुर असुर लबों  पर जाम रखे  ,

फिर नव-हेलन सी आ विरजी ,

रजधानी दिल्ली के दिल में ,

वो रोम  रोम से हर्षित है ,

अब तो हरिहर ही लाज रखे। 

              (२ )

वह आयकर का उत्पाती था ,

खुद को समझे सम्पाती था ,

प्रखर सूर्य जब तपता था ,

वह ऊँची उड़ानें  भरता था ,

अब एनजीओ के धंधे थे ,

कुछ पास कि बिजली खम्भे थे ,

वह दांत निपोरे आता था ,

फट खम्बों पर चढ़ जाता था ,

तब हैरां  होते चमचे थे ,

अब तो हरिहर ही लाज रखे। 

विशेष :सम्पाती  जटायु  का बड़ा भाई था ,जो सूर्य के पास जाना चाह रहा था पर इस प्रयास में उसके पंख जल गए थे। 

मधुबाला का अर्थ है बार टेंडर।

 इस रचना के पात्र जाने पहचाने हैं न इनके नाम छिपे हैं न काम (कारनामें ) न नीयत आप सब जानते हैं। रचना के शेष छंद अगले अंक में पढ़िए।

'वह रोम रोम से हर्षित है 'पंक्ति में यमक अलंकार है पहले रोम अर्थ देश विशेष से है दूसरे का (रोम रोम को मिलाकर )रोमकूप।

वीरुभाई 

अब तो हरिहर ही लाज रखे ---डॉ वागीश मेहता

आज पढ़िए जाति परस्त और राष्ट्रविरोधी राजनीति को बे -नकाब करती डॉ। वागीश मेहता की रचना जिसका ज़िक्र हम पिछले कई दिनों से कर रहे थे और जिसकी कुछ शीर्ष पंक्तियों का हम ने दीगर रिपोर्टों में  इस्तेमाल भी किया था :

                      अब तो हरिहर ही लाज रखे 

                                            -------------------डॉ वागीश मेहता 

जय सोनी मोनी मूढ़ मते ,

जो केजरवाल से गए छले ,

अब तो हरिहर ही लाज रखे। 
                    
                 (१  )
उस मधुबाला ने फंद  रचे ,

सुर असुर लबों  पर जाम रखे  ,

फिर नव-हेलन सी आ विरजी ,

रजधानी दिल्ली के दिल में ,

वो रोम  रोम से हर्षित है ,

अब तो हरिहर ही लाज रखे। 

              (२ )

वह आयकर का उत्पाती था ,

खुद को समझे सम्पाती था ,

प्रखर सूर्य जब तपता था ,

वह ऊँची उड़ानें  भरता था ,

अब एनजीओ के धंधे थे ,

कुछ पास कि बिजली खम्भे थे ,

वह दांत निपोरे आता था ,

फट खम्बों पर चढ़ जाता था ,

तब हैरां  होते चमचे थे ,

अब तो हरिहर ही लाज रखे। 

विशेष :सम्पाती  जटायु  का बड़ा भाई था ,जो सूर्य के पास जाना चाह रहा था पर इस प्रयास में उसके पंख जल गए थे। 

रविवार, 30 अगस्त 2015

लालू हो या सोनिया या फिर नीतीश ये सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। लोगों को डराने धमकाने और बदजुबानी करने के अलावा राष्ट्रीय इतिहास को कलंकित करने के लिए भी इन्हें जेल होनी चाहिए

हाल ही में लालूप्रसाद ने ये मनमाना आरोप केंद्र सरकार पर लगाया है कि ये सरकार उनकी जमानत रद्द कर दिए जाने का भय उन्हें सीबीआई की मार्फ़त दिखा रही है। देश के बुद्धिजीवियों का इस बाबत कहना है कि भले इन्होनें चारा खा लिया वह कोई बात नहीं लेकिन अब ये यादवों और मुसलमानों को एक होने का अावाहन करके बाकी जातियों को डरा रहें हैं संविधान के विरुद्ध जाकर वोट मांग  रहे हैं। देश की मेधा को अपमानित कर रहें हैं इसलिए इन्हें जेल में ही रखा जाए। यादव और मुसलमान यानी जाति  और धर्म को मिलाकर ये एक नया एमल्गम एक नै वर्णसंकरता पैदा करना   चाहते हैं।

क्योंकि ये अपनी ही सोच के लोग पैदा करेंगें इसलिए इनके डीएनए की भी जांच होनी चाहिए।

लालू हो या सोनिया या फिर नीतीश ये सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। लोगों को डराने धमकाने और बदजुबानी करने के अलावा राष्ट्रीय इतिहास को कलंकित करने के लिए भी इन्हें जेल होनी चाहिए। एक मर्तबा लालू ने  कहा था -१९२७ में पैदा आडवाणी पाकिस्तानी हैं। लालू की इतिहास की समझ कितनी लचर हैं संयुक्त अखंड भारत को ये पाकिस्तान बतला रहें हैं पाकिस्तान का तो तब अस्तित्व ही नहीं था। भारत के गर्भ में भी नहीं आया था तब तक पाकिस्तान। ये तो अंग्रेज़ों ने इम्प्लांट किया था नेहरू ने उसे तरजीह दी थी जिन्ना के इशारे पर।

अपमान रैली को ये महाशय स्वाभिमान रैली बतला रहे हैं।

जय सोनी मोनी मूढ़मते ,जय लालू नीतीश मंद मते

अब तो हरिहर ही लाज रखे।



अपमान या स्वाभिमान रैली


Congress Chief Sonia Gandhi Insulted at Swabhiman Rally, Claims LJP

अपमान रैली को ये महाशय स्वाभिमान रैली बतला रहे हैं। जय सोनी मोनी मूढ़मते ,जय लालू नीतीश मंद मते अब तो हरिहर ही लाज रखे

हाल ही में लालूप्रसाद ने ये मनमाना आरोप केंद्र सरकार पर लगाया है कि ये सरकार उनकी जमानत रद्द कर दिए जाने का भय उन्हें सीबीआई की मार्फ़त दिखा रही है। देश के बुद्धिजीवियों का इस बाबत कहना है कि भले इन्होनें चारा खा लिया वह कोई बात नहीं लेकिन अब ये यादवों और मुसलमानों को एक होने का अावाहन करके बाकी जातियों को डरा रहें हैं संविधान के विरुद्ध जाकर वोट मांग  रहे हैं। देश की मेधा को अपमानित कर रहें हैं इसलिए इन्हें जेल में ही रखा जाए। यादव और मुसलमान यानी जाति  और धर्म को मिलाकर ये एक नया एमल्गम एक नै वर्णसंकरता पैदा करना   चाहते हैं।

क्योंकि ये अपनी ही सोच के लोग पैदा करेंगें इसलिए इनके डीएनए की भी जांच होनी चाहिए।

लालू हो या सोनिया या फिर नीतीश ये सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। लोगों को डराने धमकाने और बदजुबानी करने के अलावा राष्ट्रीय इतिहास को कलंकित करने के लिए भी इन्हें जेल होनी चाहिए। एक मर्तबा लालू ने  कहा था -१९२७ में पैदा आडवाणी पाकिस्तानी हैं। लालू की इतिहास की समझ कितनी लचर हैं संयुक्त अखंड भारत को ये पाकिस्तान बतला रहें हैं पाकिस्तान का तो तब अस्तित्व ही नहीं था। भारत के गर्भ में भी नहीं आया था तब तक पाकिस्तान। ये तो अंग्रेज़ों ने इम्प्लांट किया था नेहरू ने उसे तरजीह दी थी जिन्ना के इशारे पर।

अपमान रैली को ये महाशय स्वाभिमान रैली बतला रहे हैं।

जय सोनी मोनी मूढ़मते ,जय लालू नीतीश मंद मते

अब तो हरिहर ही लाज रखे।



अपमान या स्वाभिमान रैली


Congress Chief Sonia Gandhi Insulted at Swabhiman Rally, Claims LJP

शनिवार, 29 अगस्त 2015

सतसंग के फूल

सतसंग के फूल

रासपंचाध्यायी के अनुसार रास लीला के लिए ही कृष्ण ने पूर्णावतार  लिया। कृष्ण कथा सुनने सुनाने से मन संसार से उपराम हो जाता है.वितृष्ण हो जाता है मन। तृष्णा नष्ट होने से मन शुद्ध हो जाता है। फिर भक्तिमहारानी आपसे आप ही आ जातीं हैं हमारे हृदयप्रदेश में मन के घरद्वारे।

इस स्थिति  में भगवद्कथा और भक्त दोनों से ही प्रेम हो जाता है। हृदय का सबसे बड़ा रोग काम हैं ,लोभ मोह क्रोध ,मत्सर्य ,रागद्वेष मन के अन्य रोग हैं लेकिन इनमें काम ही प्रधान है महारोग है। रासलीला वास्तव में कामविजया लीला है। वेदव्यास ने पंचाध्यायी के शुरू में ही कहा है लीला पुरुष स्वयं भगवान हैं इसलिए किसी भी प्रकार की शंका मन में न लाएं।

कृष्ण ने पर स्त्रियों का स्पर्श किया है। गोपियों ने वैदिक सती धर्म का निर्वाह नहीं किया है आदि आदि।

यहां रास की देवी स्वयं 'श्री' जी (राधारानी )हैं। राधारानी ही श्यामसुन्दर को रस देतीं हैं।रसशेखर बनातीं हैं।

श्रीमद्भागवद पुराण की पंचाध्यायी में कृष्ण ने योगमाया उपास्य 'श्री' जी का ही आश्रय लिया है। सच्चा प्रेम मर्यादा के सब तटों को तोड़ देता है। इसीलिए कृष्ण अवतार को सर्वश्रेष्ठ सोलहकला संपन्न पूर्ण अवतार कहा गया है।

रास लीला के तहत भगवान जिसका जैसा भाव है उसे वैसा ही रस प्राप्त कराते हैं। यशोदा के हृदय में वात्सल्य है तो यशोदा के लाल बन जाते हैं गोपों के हृदय में सख्यभाव हैं तो उनके सखा बन जाते हैं और गोपियों के हृदय में कंथ भाव है तो उनके पति (कंथ )बन जाते हैं।

अब ज़रा सोचिये १६१०८ गोपियाँ हैं और कृष्ण एक हैं और एक ही समय पर सबके साथ अलग अलग वास भी करते हैं रास भी रचातें हैं और सबके लिए अनन्य हैं (कोई अन्य नहीं हैं कृष्ण ही उनके हैं सिर्फ उनके ,गोपियों को ये मद (मान )भी हो जाता है। रासलीला के बीच से अदृश्य होकर कृष्ण ये मान भी तोड़ते हैं।उनकी उम्र सिर्फ ग्यारह बरस थी जब ये लीला संपन्न हुईं थीं। 

अक्सर लोग पूछते हैं कृष्ण ने पर स्त्रियों का स्पर्श किया है। दरसल कृष्ण भाव गोपियों को एक दिव्य शरीर प्रदान कर देता है पांच तत्वों का बना गोपियों का शरीर तो उनके घर पर ही रहता है कृष्ण की वंशी के टेर (तान )सुनके उनका दिव्य शरीर ही कृष्ण की ओर दौड़ता है और रास में भाग लेता है।

पूछा जाता है जब गोपियों के अभी कर्मबंध ही नहीं कटे हैं तो उन्हें दिव्य शरीर की प्राप्ति कैसे हुई ?

इसे सरल भाषा में इस प्रकार समझिए कि जो कर्म हम कर चुकें हैं वह जमा हो जाता है.संचित कर्म बन जाता है।
जो कर्म हम वर्तमान में कर रहें हैं वह क्रियमाण कर्म कहलाता है जिसका फल आगे मिलता है इसीलिए इसे आगामी कर्म भी कहा गया है। संचित कर्म का एक भाग हम लेकर पैदा होतें हैं इसे ही प्रारब्ध कहा जाता है जो सुख दुःख के रूप में हमें भोगना ही पड़ता है।

अब क्योंकि गोपियाँ रास भावित  होकर भगवान से मिलने के लिए दौड़तीं हैं तो उनका क्रियमाण  कर्म श्रेष्कर्म हो जाता है जो उन्हें कर्म बंधन  से नहीं बांधता है। (अकर्म बन जाता है ये कर्म जिसका आगे फल नहीं भोगना पड़ा गोपियों को) .
जो गोपियाँ कृष्ण से मिलने में कामयाब हो जातीं हैं उन्हें इतना सुख मिलता है कि उनके सारे शुभ कर्म ,सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं क्योंकि सुख भोगने से पुण्य चुकता है तथा जिन्हें कृष्ण से मिलने से उनके पति या माँ बाप रोक देते हैं उन्हें इतना दुःख मिलता  कि  उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। पाप और पुण्य दोनों नष्ट हो जाने पर गोपियों को दिव्य शरीर मिल जाता है। इसलिए शंका मत लाइए। यहां लीला पुरुष स्वयं भगवान हैं। जो स्वयं छोटे बन जाते हैं। छोटे बनके गोपियों के चरण दबातें हैं जब वे नाँचते नाँचते थक जातीं हैं। यही कृष्ण राधा रानी के बाल संवारते हैं। यशोदा के डंडे से डरते हैं।

राधा के ऐश्वर्य से तो कंस भी दहशद खाता था इसलिए बरसाने में कभी किसी राक्षस ने प्रवेश नहीं किया। गोकुल में खूब कुहराम मचाया  क्योंकि  बरसाने वृषभानु कन्या की जन्मस्थली है। राधारानी  कृष्ण की आनंद सिंधु हैं। कृष्ण के हृदय में राधा से मिलन के बाद ही आनंद सिंधु  हिलोरें लेता हैं।

ब्रज रास पाने के लिए ब्रजभावित होना पड़ता है। ब्रजरस ज्ञानियों और कर्मकांडियों को नहीं मिला है। उनमें अहंता है। इनके बारे में ब्रजवासी कहते हैं :

ग्यानी योगी विषयी बावरे ,ग्यानी पूत निकठ्ठू ,



कर्मकांडी ऐसे डोलें ,ज्यों भाड़े के टट्टू  .

ब्रजरस की प्राप्ति के लिए ब्रजभाव की आवश्यकता है। ब्रजभाव से भावित प्राणियों को ही ब्रजरस मिला है। दिव्य देह से दिव्य लीला हुई है।अपने एक पद में महाकवि सूरदास जी   कहतें है :

धनी  ब्रजधाम ,धन्य ब्रज धरणी ,उड़ि लागै जो धूल ,

रास विलास करते नंदनंदन ,सो हमसे अति दूर।
       

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

जय सोनी मोनी मूढ़मते , जो केजरवाल के संग रचे , अब तो हरिहर ही लाज रखे।

http://veerubhai1947.blogspot.com/




इनके मुंह से कभी भारत 


माँ की जय नहीं सुना। क्या 


आपने सुना है ?


जय सोनी मोनी मूढ़मते , 

जो केजरवाल के संग रचे , 



अब तो हरिहर ही लाज रखे। 


जय सोनी मोनी मूढ़मते , 


 जो केजरवाल के संग रचे ,


   अब तो हरिहर ही लाज रखे।

अब तो हरिहर ही लाज रखे।





जय सोनी मोनी मूढ़मते ,



जो केजरवाल के संग रचे ,

अब तो हरिहर ही लाज रखे। 


जय सोनी मोनी मूढ़मते ,  जो केजरवाल के संग रचे ,   



अब तो हरिहर ही लाज रखे।


जो केजरवाल के संग रचे ,




अब तो हरिहर ही लाज रखे।


पूरी रचना कल पढ़िए 




कल पढ़ियेगा  ये पूरी रचना।


 अभी रचनाधीन है।