गुरुवार, 17 सितंबर 2015

अपतु अजामिल गजु गनिकाऊ ,भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ ।

अजामिल का मतलब

अज कहते हैं ब्रह्म को ,अजकहते हैं आत्मा को। अजा कहते हैं माया को यह विशुद्ध आत्मा जब माया (अस्थाई ,विनाशी शरीर ) के संपर्क में आता है तब अजामिल हो जाता है। हम सब अजामिल हैं। अजामिल का एक दासी से मोह हो गया था। हमारा भी किसी न किसी वस्तु या व्यक्ति में निरंतर मोह बना ही रहता है।

वही दासी  उसके पतन का कारण बनी।किसी संत पुरुष ने एक आसान उपाय सुझाया तू अपने पुत्र का नाम नारायण रखले। अब भला माटी का पुतला क्या नारायण हो सकता है पर भैया नाम की महिमा अपार है। इसका पार (ठौर )तो स्वयं राम भी न पा सकें इसीलिए तुलसीबाबा ने गाया -

अपतु अजामिल गजु गनिकाऊ ,भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ । 

कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई ,रामु न सकहिं नाम गुन  गाई ॥   

नीच अजामिल गज (गजेन्द्र नाम का हाथी ) और गणिका (वैश्या ) भी श्री हरि नाम के प्रभाव से मुक्त हो गए। तुलसीदास कहते हैं मैं नाम की बड़ाई कहाँ तक कहूँ ,स्वयं राम भी राम के गुणों को नहीं गा  सकते।

अंत समय में अजामिल ने मृत्यु के भय से अपने पुत्र नारायण को पुकारा ,फ़ौरन भगवान के पार्षद उपस्थित हो गए। भगवान का नाम किसी भी विध लिया जाए वह नामी (स्वयं भगवान )को भी नमा देता है। हम लोग किसी ऊंचे ओहदे पर प्रतिष्ठित व्यक्ति का नाम लेकर ही लौकिक में अपने कितने काम बना लेते हैं। ज़रा सोचिये यदि हम निष्ठापूरक विशुद्ध मन से प्रभु का स्मरण करेंगे तो क्या राम का नाम हमारा काम नहीं बनाएगा।

उलटा नाम जपत जप जाना ,बाल्मीकि भये ब्रह्म समाना। उलटा सीधा कैसे भी लो प्रभु का नाम लो ,हम तो पूर्व में अपने नौकर (महाराज )का भी नाम रामु और श्यामू रखते थे। ताकि अंत समय मुख से राम ही निकले। र रकार और म मकार की बड़ी महिमा हैं र मुकुट रूप में तथा म अनुस्वार रूप में अक्षरों के सर पर चढ़ा रहता है जैसे पूर्ण में र रकार तथा अहंता में है के ऊपर अनुस्वार रूप बिंदी। 

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