बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

जब भी बोलिए वक्त पर बोलिए , मुद्दतों सोचिये मुख़्तसर बोलिए।



जब भी बोलिए वक्त पर बोलिए ,

मुद्दतों सोचिये मुख़्तसर बोलिए। 

नरेंद्र दामोदर मोदी अपने स्वभाव से सबको जीत लेते हैं। जीत के लिए उन्हें अश्वमेध का घोड़ा नहीं छोड़ना पड़ता महाराज परीक्षित की तरह।वह अत्यंत मृदु भाषी हैं। वह अपने स्वभाव से ही किसी के साथ छल नहीं करते। सबके लिए स्वीकृति रहती है उनके मन में। महाराज परीक्षित की ही तरह वह पराशक्ति से अभिरक्षित हैं। वह परा-शक्ति हैं  उनकी माँ। 

देर से प्रतीक्षित थे माँ भारती के प्रधानसेवक के रूप में मोदी। बांका क्षेत्र में उन्होंने चुनावी शंख फूँका तो महाठगबंधन के सभी ठगिया श्रीहत  हो गए। उनके चेहरे श्रीहीन हो गए। शंख के भैरव स्वर सुनकर उनके चेहरे निस्तेज हो गए। भय और अवसाद ने आ घेरा उन्हें। 

ध्वनि एक ही थी मोदी के वही भैरव स्वर सुनकर भाजपा के घटक दल उल्लसित हो गए। ठगिया चुनावी समर से पहले ही परास्त हो गए। उन्होंने अपनी हार मान ली। 

मोदी के पास एक एटीट्यूड है विनम्रता है। इसीलिए वह सबको साथ लेके चल पाते हैं पूरा देश चला सकतें हैं।    

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