मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

तुलसीदास ने मानस की शुरुआत अक्षर ब्रह्म उपासना से की है। शब्द ब्रह्म है। शब्द वेधक भी है साधक भी है। शब्द की मार से बना घाव जीवन भर रिस्ता रहता है। शब्द घायल करता है चोट मारता है। शब्द बोधक भी है। शब्द में प्रकाश है बोध है ,आश्वासन है प्रियता है। शब्द में आत्मीयता है शब्द अपना बना लेता है। व्यक्ति के बोल में उसकी पूरी पीढ़ियां बोल रहीं होतीं हैं। पता चलता है किस ऊंचाई से वह बोल रहा है।


अच्छा बोलने का स्रोत अच्छा विचार है। हम जो कुछ भी हैं सोच की सत्ता हैं अपनी सोच का प्रोडक्ट हैं। हमने जो सोचा हम वही बन गए। मनसा ,वाचा, कर्मणा -ये तीन बातें ठीक कर लीजिये। जिसे ठीक से सोचना नहीं आता वह सो नहीं पाता है आप हर पल अपने विचारों में रहतें हैं।गुरु आपको यह सिखा देगा -अच्छा सोचना ,अच्छा बोलना ,अच्छे कर्म करना।


कबीरा सूता क्या करे ,जागे जपो मुरार , एक दिन सोना होयेगा ,लम्बे पाँव पसार।

सत्संग के फूल :

गुरु में तुममे भेद न देवा ,गुरु सेवा सो तुमरी सेवा।

गुरु में श्रद्धा के बिना भगवान नहीं मिल सकते।

श्री राम त्रियब्रह्म हैं। पूर्ण ब्रह्म हैं। पारब्रह्म हैं ,ऐसा शाश्त्रों में कहा गया है।

लक्ष्मण जी जीवाचार्य हैं। समस्त जीवों के आचार्य हैं। और आचार्य तत्व को हमारे यहां सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

मोते  अधिक गुरु ही  जिय जानी -वो समस्त जीवों के शाश्वत  गुरु हैं। सनातन गुरु हैं।

लक्षमण जी समस्त जीवों के आचार्य हैं।आचार्य प्रधान हैं और प्रधान पूजा सबसे अंत में ही होगी। रुद्राभिषेक में सबके पूजन के बाद फिर शिव का पूजन होता है।  लक्षमण जी श्रीरामजी की सेवा संपत्ति का विस्तार करने वाले हैं ,को बढ़ाने वाले हैं उसमें निरंतर वृद्धि करते रहते हैं। जब श्रीसीता रामजी वन प्रवास के दौरान सो जाते हैं लक्ष्मण जी तब भी जागते रहतें हैं। वह वनवास की पूरीअवधि में सोये नहीं हैं। राम के सजग प्रहरी बन खड़े रहे हैं।
लक्षमण जी तन मन की शक्ति लगाके रामजी को प्रसन्न करने में लगे रहते हैं। लक्ष्मी सम्पन्न हैं लक्षमण।हरि गुरु सेवा में जो लगा हुआ है वही सम्पन्न हैं।  सेवा ही संपत्ति है। लक्ष्मी वर्धना लक्ष्मी सम्पन्ना है लक्षमण जी तो मानो श्री रघुनाथ जी के बाहरी  प्राण बन गए हैं ।

कबीरा सूता क्या करे ,जागे जपो मुरार ,

एक दिन सोना होयेगा ,लम्बे पाँव पसार।

फिर अंतिम सेज चिता ही होगी जिसपे पौढाया जाएगा और फिर आगे क्या होता है आप जानते ही हैं उसे कहने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए सोना तो वही सोना है जो प्राणयुक्त शयन हो। बिना प्राण कोई सो नहीं सकता।

प्रमाद व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु है और अ -प्रमत्तता सबसे बड़ी योग्यता है। वेद कहता है -अ -प्रमत्त होकर सुनें। जितनी भी साधनाएं हैं उनमें पहला साधन श्रवण है।कथा श्रवण हमें डी -टॉक्सिफाई करता है हमारा अवसाद दूर करता है ,प्रमाद को दूर भगाता है।

जब हम किसी से घृणा करते हैं तब उसको जिसे हम घृणा करते हैं पता भी नहीं होता है हम अपना ही नुक्सान कर रहे होते हैं यह विष जमा करके अपने पास। समेटे रहतें हैं टॉक्सिन्स अपने अंदर।  जब तक आप नहीं चाहेंगे आपको कोई अपमानित नहीं कर सकता ,आप प्रोवोक करते हैं। आप खुद उसमें एक पलीता लगाते हैं अपने को आश्वस्त करते हैं हाँ मैं अब अपमानित हो सकता हूँ।

श्रवण से सात दिन में परीक्षित का मृत्यु का भय चला गया। अर्जुन का युद्ध क्षेत्र से पलायन चला गया सुनने के बाद। सुनना एक बड़ी चीज़ है। ज़ज़ भी पूरा केस सुनने के बाद निर्णय करता हैं। आपको अच्छा बनने का अवसर नहीं मिला ये ठीकरा आप किसी पर नहीं फोड़ सकते हैं। आप हर पल अच्छा बन सकते हैं।

साधू ऐसा चाहिए जैसे सूप सुभाय। अच्छा अच्छा रख लीजिये। कथा आपके अंदर सूप (छाज )का कार्य करती है। आप अच्छा अच्छा रखलें ज्यादा भी किसी की आलोचना न करें कि इस संसार में कुछ अच्छा ही नहीं है।

राम जी को लक्षमण जी के बिना नींद नहीं आती है। अपने अयोध्या प्रवास में वह लक्षमण जी के बिना भोजन नहीं करते हैं माँ के देने पर मिठाई नहीं खाते हैं लक्षमण के बिना । माँ को कहते हैं लक्षमण कहाँ हैं उन्हें बुलाओ पहले तब मिठाई खाऊंगा। लखन लाल   जी ज़रूरी हैं उनके बिना श्रीरामजी भोग नहीं लगाते हैं। लक्षमण जी रामजी के दाएं हाथ हैं। लक्षमण के बिना वह खाते नहीं हैं। खाना तो दायें हाथ से ही खाया जाता है।

जो आशा के दास हैं वह सारे संसार के दास हैं और आशा जिनकी दासी है वह सारे संसार के स्वामी है।

आशा परमं दुःखं,निराशा परमसुखम्।

इच्छा ही दुःख देने वाली है।

आज के दिवस  की मैं जाऊँ बलिहारा,

मेरे घर आया ,राजा राम जी का प्यारा।

राम भारत के प्रभात का  प्रथम स्वर है। राम मन्त्र है। राम अद्भुत चरित्र है भारत की संस्कृति का मेरुदण्ड है सुष्मुना है। राम भारत की पहली ध्वनि है। भारत की उच्चता ,भारत की चेतना ,भारत की मर्यादा अगर कोई ढूंढना चाहे एक साथ तो वह है राम। भारत में यही तो ध्वनि निकलती है :राम राम जी। राम में संयम समाया है। राम साक्षात धर्म की मूर्ती हैं। राम चेतना है ,धर्म है।

तुलसीदास ने मानस की शुरुआत अक्षर ब्रह्म उपासना से की है। शब्द ब्रह्म है। शब्द वेधक भी है साधक भी है। शब्द की मार से बना घाव जीवन भर रिस्ता रहता है। शब्द घायल करता है चोट मारता है। शब्द बोधक भी है। शब्द में प्रकाश है बोध है ,आश्वासन  है प्रियता है। शब्द में आत्मीयता है शब्द अपना बना लेता है। व्यक्ति के बोल में उसकी पूरी पीढ़ियां बोल रहीं होतीं हैं। पता चलता है किस ऊंचाई से वह बोल रहा है।

कोयल विरह के  गीत गाती है। लेकिन उसके बोल में अतिथि का आगमन नहीं है काग की तरह। कोयल अपनों की स्मृति नहीं कराती। कौवे को हम उड़ाना चाहते हैं। वह अपनों की स्मृति दिलाता है।

अच्छा बोलने का स्रोत अच्छा  विचार है। हम जो कुछ भी हैं सोच की सत्ता हैं अपनी सोच का प्रोडक्ट हैं। हमने जो सोचा हम वही बन गए।

मनसा ,वाचा, कर्मणा -ये तीन बातें ठीक कर लीजिये।
जिसे  ठीक से सोचना नहीं आता वह सो नहीं पाता  है आप हर पल अपने विचारों में रहतें हैं।गुरु आपको यह सिखा देगा -अच्छा सोचना ,अच्छा बोलना ,अच्छे कर्म करना।

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