मंगलवार, 24 नवंबर 2015

प्रिया क्या है अब भी कुछ वैसे वैसे लक्षण दिखाई देते हैं। आपस में लोग राम राम करते हैं ,राम मंदिर की बात होती है ,सब के लिए समान क़ानून की बात होती है। अब कोई ऐसा प्रधानमंत्री भी नहीं है जो कहे इस देश की संपत्ति पर पहला हक़ मुसलामानों का है। डर तो लगेगा ही प्रिया हमारी अल्पसंख्यक जमात को और हमारे मज़हब को समान क़ानून से क्या लेना देना। ये तो अभिव्यक्ति पर संकट है । अ -सहिष्णुता की हद है। भला कैसा अच्छा ज़माना था कि पाकिस्तानी सैनिक आकर हिन्दुस्तानी सेना के सिर काट के ले जाते थे। और हमारे प्रधानमंत्री सहिष्णुता के मद्दे नज़र घोड़े बेचके सो जाते थे। ऑस्ट्रेलिया में भी यदि कोई हमारा बिरादर आतंकी होने के शक में धरा जाता था तो हमारे प्रधानमन्त्री की नींद उड़ जाती थी। रात करवट बदलते जाती थी। कहीं कोई डर भी नहीं था। मौज़ ही मौज़ थी। लिव -इन -रिलेशन बढ़ाओ ,ये गृहस्थ में क्या रखा है। गे बनके रहो न। मौज़ ही मौज़। हमें तो अच्छा लगता है कोई भय भी नहीं। पता नहीं कैसे लोग आ गए हैं। अब इस पर भी चर्चा करते हैं। दूसरों के खाने पीने पर भी एतराज उठाते हैं। बकरी खाओ या सूअर या गाय जानवर ही तो हैं। बकरी और सूअर पर कोई एतराज नहीं पर गाय पर दादरी खड़ी कर देते हैं। अच्छे भले से इखलाक को शहीद कर देते हैं।

आमिर भाई !ये सारी  बात बहाना है ,मोदी सरकार निशाना है

हे प्रिया !हे किरण !तुमने क्या कह दिया ,तुम्हे डर लगता है। ये सुनकर तो मैं भी डरा जा रहा हूँ। अब तक तो मैंने अपने डर को ज़ाहिर नहीं किया था ,तुमने तो उसे जगा दिया। ये भी हो सकता है मुझमें डर  रहा होगा ,मैं तो तब भी किसी से नहीं डरा था जब मैंने तुमसे विवाह किया था। मुझे तब डरना तो चाहिए था पर तुम्हारे जैसे भोले विश्वास और अहिंसक जातीय गुणों से मैं प्रभावित था।  प्रभावित तो  आज भी  हूँ पर तुम्हें किसी ने क्या कह दिया कि डरी   हुई हो। हाँ ऐसा कहने से यदि किसी तुम्हारे पसंद की राजनीतिक हस्ती को फायदा होता है तो कोई बुरी बात नहीं। एक अच्छे पति के नाते मैं भी यही कहूँगा कि देखो चारों तरफ डर ही डर है।

कहीं न कहीं कुछ तो  हो रहा है। जब बाहर के कई मुल्क ऐसा कह रहें हैं या कोई वित्तीय लाभ पहुंचा रहे हैं तो हमारे कहने में क्या हर्ज़ है। हम यही कहेंगे कि डर ही डर है। कुछ तो अपनी कौम का हमें भी लिहाज़ रखना चाहिए। अब देखो न देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का दामाद डरा हुआ है। उसके साथ जमीन हड़पु कई और लोग भी डरे हुए हैं ,पर मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया मैं तो तब भी नहीं डरा था जब मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था। जब अयोध्या से लौट रहे रामभक्तों के पूरे कम्पार्टमेंट को ज्वलनशील तेलों से जला दिया गया था। मैं तो तब भी बे -खौफ था ,पर एक बार जब इन्होनें बम्बई बोले तो अपने बॉम्बे को मुंबई कहना शुरू किया था तब हल्का सा झटका मुझे लगा था।

प्रिया  क्या है अब भी कुछ वैसे वैसे लक्षण दिखाई देते हैं।  आपस में लोग राम राम करते हैं ,राम मंदिर की बात होती है ,सब के लिए समान क़ानून की बात होती है।  अब कोई ऐसा प्रधानमंत्री  भी नहीं  है जो कहे इस देश की संपत्ति पर पहला हक़ मुसलामानों का है। डर तो लगेगा ही प्रिया हमारी अल्पसंख्यक जमात को और हमारे मज़हब को समान क़ानून से क्या लेना देना। ये तो अभिव्यक्ति पर संकट है । अ -सहिष्णुता  की हद है। भला कैसा अच्छा ज़माना था कि पाकिस्तानी सैनिक आकर हिन्दुस्तानी सेना के सिर काट के ले जाते थे। और हमारे प्रधानमंत्री सहिष्णुता के मद्दे नज़र घोड़े बेचके सो जाते थे। ऑस्ट्रेलिया में भी यदि कोई हमारा बिरादर आतंकी होने के शक में धरा जाता था तो हमारे प्रधानमन्त्री की नींद उड़ जाती थी। रात करवट बदलते जाती थी। कहीं कोई डर भी नहीं था। मौज़ ही मौज़ थी। लिव -इन -रिलेशन बढ़ाओ ,ये गृहस्थ में क्या रखा है। गे बनके रहो न। मौज़ ही मौज़। हमें तो अच्छा लगता है कोई भय भी नहीं। पता नहीं  कैसे लोग आ गए  हैं। अब इस पर भी चर्चा करते हैं। दूसरों के खाने पीने पर भी एतराज उठाते हैं। बकरी खाओ या सूअर या गाय जानवर ही तो हैं। बकरी और सूअर पर कोई एतराज नहीं पर गाय पर दादरी खड़ी कर देते हैं। अच्छे भले से इखलाक को शहीद कर देते हैं।

अब भय तो लगेगा ही। ऐसे माहौल में कैसे ज़िया जा सकता है। हम तो ठसके से जिएंगे। अपनी शान बान ,नौकर चाकर और अपनी मर्ज़ी से जैसे चाहेंगे जिएंगे। जो मन में आएगा वही खाएंगे। शयन कक्ष और छत को एक जैसा बना देंगे। पर कहेंगे तो हम  यही कि चारों ओर डर ही डर है। डर किसको नहीं है। चोर डकैत तस्कर पकड़े जा रहे हैं। क्या ये मेहनत का काम नहीं। उनको कुचला जा रहा है। इसलिए तो पप्पू कह रहा है ,पूरे गर्जन तर्जन से कहता है कि मुझे जेल में डाल दो मैं किसी से नहीं डरता। जब वो जेल में जाकर नहीं डरता तो मेरी प्रिया तुम क्यों डरती हो।

हाँ कोई   बड़े लाभ का सौदा कर लिया है तो मैं यही  कहूँगा कि चारों तरफ डर ही डर है। अभिव्यक्ति पर संकट है। कितनी अ -सहिष्णुता है। देखो परसों से संसद का शीतकालीन अधिवेशन आरम्भ हो रहा है। हम ही छाये रहेंगे उसमें। मंदमति मूषक राग डर -भैरव ही अलापेगा।

 प्रस्तुति :डॉ वागीश मेहता ,एवं वीरेंद्र शर्मा

1 टिप्पणी: