शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

कुण्डलिनी क्या है ?




कुण्डलिनी क्या है ?

कुण्डलिनी एक प्रकार की सचेतन ऊर्जा है जिसके मुख्यतौर पर हमारे शरीर में सात केंद्र हैं जो नियमित अपना -अपना काम करते हैं। मूलाधार इसका पहला तथा सहस्रधार या ब्रह्मरन्ध्र सातवां शारीरिक ऊर्जा  केंद्र है । हालांकि इन सबकी ऊर्जा का सोता हमारा मस्तिष्क ही है लेकिन इनका स्पंदन अपनी -अपनी निर्धारित जगहों से ही होता है।जहां से ये हमारे शरीर के स्रावी तंत्र को चलाये रहते हैं ,हमारे भावानुभाव ,राग -विराग ,हमारी बुद्धिमत्ता का भी संचालन करते हैं। मसलन मूलाधार हमारी तमाम तरह की वासनाओं (इच्छाओं )का केंद्र है यही हमें बाहरी जीवन और जगत से जोड़ता है। सृष्टि की निरंतरता यौन कर्म का संचालन विनियमन यही करता है। 
यूं हज़ारों हज़ार   ऊर्जा चक्र हैं हमारे शरीर में  लेकिन जैसे १०८ उपनिषद मान लिये गए हैं और उनमें से भी ग्यारह प्रमुख उपनिषद जानकारों ने बतलाये हैं जिनके भाष्य आदिगुरु शंकराचार्य ने लिखें हैं ऐसे ही ११४ ऊर्जा चक्र जानकारों ने बतलाये हैं इनके अलावा  भी अनेक और ऊर्जा चक्र  हैं लेकिन ११४ ऊर्जा चक्रों को ही प्रमुख मान लिया गया है। इनमें से भी प्रमुख्तार सात को मान लिया गया अहइ जिनकी चर्चा हम इस आलेख की आगे की किस्तों  में करेंगे। 
हमारे शरीर में ऋषिमुनियों ने ७२ ,००० नाड़ियाँ बतलाईं  हैं। ये ऊर्जा सरिताएं या चैनल हैं जिनसे होकर संजीवनी ऊर्जा या प्राण (Vital energy )पूरी काया में  आवाजाही करते हैं पूरे शरीर को अनुप्राणित करते हैं। एक पेचीला ऊर्जा -तंत्र या ऊर्जा- रूप है हमारा शरीर। 

हमारी काया के अनेकस्थलों या बिंदुओं पर ये नाड़ियाँ आकर मिलती हैं जंक्शन पर जैसे ट्रेनें आती हैं फिर आगे बढ़ जातीं   हैं। ये मिलनबिंदु त्रिभुज बनाते हैं। इन्हें ही चक्र या चक्का ा(वील )कह दिया जाता है। इनमें कुछ केंद्रों के पास ज्यादा सत्ता निहित रहती है शेष के पास इससे कमतर ही ऊर्जा शक्ति रहती है। अलबत्ता हमारे सारे गुणदोषों के जन्मदाता माई -बाप यही केंद्र बने रहते। 

इन दिनों बरसाती मेढकों की तरह गली -गली ऐसे गुरु निकल आएं हैं जो अपने को भगवान्  बतलाते हैं। आपको भी ब्रह्मज्ञानी (आत्मज्ञानी )बना देने का दावा पेश करते हैं। कुंडलिनी जागरण केंद्र चलाते हैं जबकि न इन्हें   'कुण्डलिनी' शब्द का अर्थ पता  है और न ही 'कुण्डलिनी -जागरण' के निहितार्थ। 

एक मोटे उदाहरण से अपनी बात समझाने की कोशिश करते हैं। हिमालय के किसी हिमनद या ग्लेशियर से निकल जलधारा अधोगामी रुख कर लेती है ,जल का प्रवाह अधिक से कमतर दाब की ओर  रहता  है। अधिक पोटेंशिअल एनर्जी से लोवर की ओर  ऊपर से नीचे के जल स्तर की ओर   स्वत : स्फूर्त ही रहता है। कुण्डलिनी जागरण का  मतलब है पहले तो बाँध बनाकर इस पानी को रोका जाये। फिर लगातार इसका स्तर ऊंचा उठाया जाए और दोबारा इसे हिमालय पर ही ले जाया जाए। 
इनको भले मानुषों को ये नहीं मालूम मस्तिष्क में तो पहले ही दुनिया भर का कचरा बाहरी सूचनाएं एक से एक आला विचार सरणियाँ प्रवाहित हैं वह कैसे इस अकूत पोटेंशिअल एनर्जी को संभालेगा।उत्पात मचा देगा हमारा मस्तिष्क। मेनियाक हो जायेंगे हम लोग।क्योंकि कुण्डलिनी जागरण से पहले शिष्य वीत -राग होना चाहिए और गुरु ब्रह्म -ग्यानी। न शिष्य के दिमाग में इंटरनेट या पोर्न होना चाहिए न होटल और रेस्त्रां न स्टार्टर्स न मेनकोर्स। 

 कहने की जरूरत नहीं है ये स्वयं -भू (स्वयं घोषित गुरु -'गुरु घंटाल' हैं जो अपनी अनुकृति बनाके आपको पेश करने का दावा करते हैं।कैसे ये जान ने के लिए आगामी किस्तों का इंतज़ार हमें भी रहेगा आपके साथ। 

सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.huffingtonpost.com/sadhguru/the-7-chakras-and-their-s_b_844268.html   

(ज़ारी )

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