शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

सनातन क़साई बनाम कुत्ताए लोग

सनातन क़साई बनाम  कुत्ताए लोग

यूं स्वान (कुत्ता जी )हमारे पर्यावरण का हिस्सा नहीं रहा है लेकिन इस मामले में गोरों की तारीफ़ करनी पड़ेगी जिनके घर के बाहर लिखा होता है। माई होम इज़ वेअर माई डॉग इज़। ये लोग अपने पैट को डायपर तो नहीं पहनाते लेकिन उसका मलमूत्र ,एक्स्क्रीटा पूपर स्कूपर से खुद उठाकर उसका निपटान करते हैं। इलाज़ मुहैया होता  उनके पैट को डायबिटीज से लेकर कोरोनरी बाई पास ग्रेफ्टिंग तक.

हमारे अमीरज़ादे पैट को इलाज़ तो  मुहैया करवाते हैं लेकिन आसपास के पर्यावरण को गंधाते है -दिल्ली का सबसे लोकप्रिय पार्क लोदी   गार्डन भी इनके लाडलों के मलमूत्र से गंधाता है। जगह जगह  डॉग एक्स्क्रीटा आपको परेशान करेगा।

इफ दी डॉग   बिलोंग्स ट यू ,सो डज़ हिज एक्स्क्रीटा। लेकिन ये कुत्ताए लोग इसकी अनदेखी करते हैं। गंधा रखा  इन्होनें कॉलोनी मोहल्लों पार्कों को।

आइये अब भारतीय नस्ल की गाय की बात की जाए विदेशी जिसका मूत्र आयात करते हैं दवा निर्माण के लिए। गौ रेचन (गाय के कान का मैल )मीग्रैन में रामबाण है। तो पंचगव्य यज्ञ को सम्पूर्णता प्रदान करता है। गाय का दूध ,घृत ,दही ,गोबर  ,गौ मूत्र  से एक ख़ास अनुपात में मिलाने से प्राप्त होता है पंचगव्य। गाय जब अपने हिस्से का दूध दे चुकी होती है प्रजनन भुगता चुकी होती है तब भी उससे प्राप्त सारे उत्पाद चारे की कीमत से ज्यादा ही रहते हैं।

लेकिन चारे के  स्थान पर उसे मिलता है पॉलीथिन का पेकिट जिसमें डिस्पोज़बल ब्लेड भी हो सकता है  है टूटा  कांच भी रसोई से निकला कचरा भी ऑर्गेनिक इनऑर्गेनिक सब कुछ उसे कचरे के ढेर से निशुल्क मिलता है।

सनातन कसाई  हैं गाय को दुह कर कचरे के ढेर पर छोड़ने वाले लोग। कसाई तो एक ही बार ज़िबह करता है लेकिन ये शहरी खिलाड़ी रोज़ उसकी हत्या करते हैं। 

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